उन्हीं दिनों की बात है जब गर्मियों की छुट्टी में, दुर्गा पुजा में और
दिसंबर मे वार्षिक परीक्षा के बाद हम लोग दरभंगा से अपने गाम जाया करते.
महज 29-30 किलोमीटर की यात्रा. भीड़ भरे बस, 1753, 2153... और एसी ही
अनेकों 53 प्रत्यय वाली लाल मुंह की बसें. वहां गर्मी में सुबह अंघेरे
आम तुड़बाने जाया करते, दलान में सोते, छोटी छोटी कपों में चाय पीया करते
वह भी भोर होने से पहले. यहां यह जोड़ देना जरुरी है कि दरभंगा डेरा पर मां
का चाय पर पहड़ा हुआ करता और हम बच्चों को चाय नहीं मिलता.
पर गाम में मेरे पितामह, हमारे बबा का दलान मॉ की पहुंच से बहुत दुर हुआ
करता. जब तक सुर्योदय होता हम लोग गाछी से लौट भी रहे होते. फिर आम का पाल
लगाया जाता, घूप लगाया जाता और छंटनी होती. मोहनजी भाईजी के नेतृत्व में,
बांकी सब उनके अस्सिटेंट हुआ करते. अबतक, मॉ की तरफ से तैयार होने का और
जलखई करलेने का दबाब बढ़ने लगता और हम सब घर के ही छोटे पोखर का रूख कर रहे
होते. पूरा दिन खेल, शोर शरावा. दिन भर इधर से उधर बौआना, कभी मोछ की चटनी
तो कभी कच्चे आम का झक्का. मौलवी सहाब की दुकान से बंसी और तरैला लाना और
बुढ़िया कब्बडी का खेल. लेकिन यह सब तो गाम पहुंचने के कुछ देर बाद या फिर
अगले दिन शुरु होता. गाम में बस रुकते ही गोसौन को गोड़ लगने और बड़ों का
आशिर्वाद लेने के ठीक बाद या शायद उससे भी पहले सबसे पहले भाग कर छत पर चढ़
जाते. पहली मंजिल पर एक खाली चौकोर कमरा महज एक चारपायी निवासी. अंगूर की
बेलें और खट्टी खट्टी लेकिन बेहद रसीली गहरे रंग की अंगूर. पर मंजिल तो अभी
आगे हुआ करता, उस एकाकी छत वाले कमरे के छत पर जाना. लकड़ी की एक सुरूची
पूर्ण सीढी हुआ करती और हम उसे चढ़ ऊपर सबसे ऊंचे छत पर चढ़ जाते. जालीदार
खुबसुरत रेलिंग की सुरक्षा में सामने पूरा पसरा हुआ पूब. बाल मन में किसी
का कहा बात घर कर चुका था कि साफ आसमान में हमारे गाम के उस छत से हिमालय
की वर्फ भरी चोटियॉं दिखती थी. दूर तक पसरे पूब और ऊत्तर की कोण में मैं
कभी यह तय नहीं कर पाता कि जो दख रहा होता वह उजले नीले वादल हुआ करते या
सचमुच हमारी किस्मत हमारी साथ दे रही होती और हिमालय ही के दर्शन हो रहे
होते. सत्य को किसने देखा. विग्यान जिसने इस सत्य को देख लेने का दावा
किया, उन दिनों मुझसे तो दूर ही था. हिमालय पहाड़ या उजले नीले वादल तुम
जो भी थे मुझे पसंद थे. एक उत्तर बिहार में पलने बाले मन में तुमने हिम
आच्छादित पहाड़ देखने की ललक को जगाये रखा.
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