Wednesday, May 23, 2012

आज भी फेसबुक पर उसने लाईक बटन नहीं दबाया. अब तो उम्मीद भी छुट गयी. यह सोचते जैसे ही दरभंगा के राम चौक पर छज्जू हलवाई के दूकान पर गरमा गरम सिंघारे और इमरती के दोने से अपनी आँख उठाई कि ठीक सामने उसकी वही आंखें थी. बातूनी नजर, दोष देती, झगडा करती, नोक झोंक से लब डब, अशांत, अबूझ, अनंत और अद्भुत.दुनिया की सारी मासूमियत को समेटे. बगल के पान के दूकान पर भांग के गोलों से भरी स्टील की चमचमाती ट्रे के साथ रखे रेडियो पर 'गाम घर' में खुरखुर भाई की आवाज खनक रही थी " एं येई चानो दाई हमरा ई कहू जे अहाँ कहियो फेसबुक ईमेल देखलियई की अखैन तक गोईठे पैथ रहल छी". चानो दाई छुटिते ठाई पर ठाई दग्लीह: "अहाँ के की लागैयेह जे इन्टरनेट खाली पुरुख'क बपौती छियैक. हम त ट्विटर आ माइक्रो- ब्लॉग्गिंग सेहो करैत छी, फेसबुक आ ईमेल त आब तनकपुर वाली सेहो करैत छथि. हँ..." मुहँ में फंसे सिंघारा को किसी तरह गले के अन्दर ठूंसते आँखों ने बस यही पूछा--लेकिन क्यों तुमने अचानक यह सिलसिला क्यों बंद, क्या मजबूरी, एक बार कह कर तो... उसके ओंठ हिले, "मेरा सारा का सारा एकाउंट हेक हो गया है. आई कांट एक्सेस एनी थिंग".
( रवीश और गिरीन्द्र से प्रेरित)

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