Tuesday, January 19, 2010

चिरई- चुन्मुनी'क खिस्सा

कुछ दिन हुए, एक बहुत ही अच्छी किताब पढने को मिली. किताब मैथिली में थी मायानाथ झा लिखित "जकर नारी चतुर होय"। लेखक जो मेरे एक रिश्तेदार भी है, एक सेवा-निर्बित सैन्य अधिकारी हैं। किताब की कहानियाँ छोटी छोटी हैं और मूलतः बच्चों की दुनिया को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं। लेकिन इन्हें यदि आप इसी दायरे में समेटकर रख दें तो शायद एक भूल होगी। बहुतेरी कहानियां आधुनिकता से हमे बहर भी ले जाती है। या फिर कहैं तो एक वैकल्पिक समाज की ओर ले जाती है। दूसरी तरह से यह भी कहा जा सकता है की बच्चों का संसार इसलिए भी मनमोहक होता है क्योंकि वहाँ एक विकल्प अपनी मासूमियत के साथ हमारे सामने होता है। विकल्प एक समाज का, एक समय का, एक रचनाशीलता का।
खैर, इस किताब की एक कहानी मेरा पांच साल का बेटा प्रति दिन सोने से पहले सुनाने की जिद करता है। कहानी है चिरई-चुन्मुनी'कथा।
एक बार एक छोटी चिरिया को घूमने जाने का (तीर्थ यात्रा पर जाने का) मन हुआ। यात्रा-खर्चे के लिए वह कहीं से एक दाल के दाने को लायी। सोची इसे पीसकर सत्तू बना लूंगी तो बट-खर्चा हो जायेगा। लेकिन जैसे ही वुस दाल के दाने को जांत में डाली वह जनत के खुट्टे में समा गया। अब वह निकले तो कैसे? और, यहाँ अथ शुरू होती है इस छोटी चिरिया के जद्दो जहद की दास्ताँ।



चिड़िया गेल कमड़ा(बढ़ई) लग आ कहलकैक,

कमड़ा, कमड़ा, कमड़ा।

खुट्‍टा फाड़ कमड़ा,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

राजा, राजा, राजा।

कमड़ा बजाउ राजा,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ

की ल जैब परदेश।

रानी, रानी, रानी।

राजा बुझाउ रानी,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

सर्प, सर्प, सर्प।

रानी डसू सर्प,

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

लाठी, लाठी, लाठी।

सर्प मारु लाठी,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

आइग, आइग, आइग।

लाठी डाहू आइग,

लाठी ने सर्प मारे,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

पाइन, पाइन, पाइन।

आइग मिझाउ पाइन,

आइग ने लाठी डाहे,

लाठी ने सर्प मारे,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

हाथी, हाथी, हाथी।

पाइन सोंखु हाथी,

पाइन ने आइग मिझाबे,

आइग ने लाठी डाहे,

लाठी ने सर्प मारे,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश।

हाथी सेहो चिड़ै के सहायता करबा से मना क देलकैक।

तखैन चिड़ै रस्‍सी लग गेल।

रस्‍सी, रस्‍सी, रस्‍सी। हाथी बान्‍ह रस्‍सी।

हाथी ने पाएन सोंखै,

पाइन ने आइग मिझाबे,

आइग ने लाठी डाहे,

लाठी ने सर्प मारे,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश?

रस्‍सी सेहो मना क देलकैक।तखन चिड़ै गेल मुसरी लग।

मुसरी, मुसरी, मुसरी।

रस्‍सी काटू मुसरी।

रस्‍सी ने हाथी बान्‍हे।

हाथी ने पाएन सोंखै,

पाइन ने आइग मिझाबे,

आइग ने लाठी डाहे,

लाठी ने सर्प मारे,

सर्प ने रानी डसे

रानी ने राजा बुझाबे,

राजा ने कमड़ा बजाबे,

कमड़ा ने खुट्‍टा फाड़ै,

खुट्‍टा ने दालि दिए, की खाउ की पिउ,

की ल जैब परदेश?

मुसरी सेहो सोचलक जे एना जे हम हरदम चिड़ै-चुनमुनिक काज करैत रहब त भेल कि किछु बांकी। मना क देलकैक। तखैन चिड़ै बिलाई लग गेल। सबटा खिस्‍सा कहलकैक। बिलाई के चिड़ै पर दया सेहो भेलैक आ बांकी सब पर तामस सेहो चढ़लैक। कहलकैक चल त मुसरी लग कोना ने काज करत, देखै छियैक।

मुसरी लग चिड़ै आ बिलाई दुनु आयल, बिलाई के देखैत देरी मुसरी रस्‍सी कटबा लेल तैयार भ गेल। अहि तरहें एक पर एक सब केओ जे पहिने चिड़ै के मना क देने छलैक सब ओकर सहायता कर लागल आ अपन उपर जखैन बिपत्‍ति के देखलक त तुरत चिड़ै के काज कर लागल। अंत मे खुट्‍टा सेहो दालि द देलकैक। चिड़ै दालि अपन चोंच मे दबा परदेश उड़ि गेल।


3 comments:

  1. बहुत बढ़िया है सदनजी, गत कुछ वर्षों में मुझे मैथिली और उसका संसार हिंदी से कुछ भी कम नहीं लगता है. बहुत बढ़िया.

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  2. प्रभास रंजन4:04 pm

    आगे, सदन जी ओइ दाल के छोटका सदन के दे देलन।

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  3. मेरी मां यही खिस्सा मगही में सुनाया करती थी।..

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