उन्हीं दोपहरियों में जब आंखे कमरे की लंबाई नाप कर
इसी दरबाजे के पोरों और कुंडी तक दबे पांव आती।
और फिर, उल्टे पांव तेजी से वापस लौट आती,
अपने में ही सिमट जाते जाने के लिये.
इसी दरबाजे के पोरों और कुंडी तक दबे पांव आती।
और फिर, उल्टे पांव तेजी से वापस लौट आती,
अपने में ही सिमट जाते जाने के लिये.
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