Thursday, April 27, 2017



वही पुरानी राहदरी, वही इश्क इधर से उधर फिरते रहने का। 
बेमतलब, बेकाम तो नहीं रहा होगा कमरे के बाहर भटकते रहना उन दोपहरियों में जब भुबन का रेखा से हुए छुअन को पढ़ा होगा और कमरे से निकल ख्वावों का दरिया सिंचा होगा , ठीक यही इसी छत के नीचे । 
यहीं कहीं रह गयी होगी तुम भी तो शशि।


Image may contain: outdoor

No comments:

Post a Comment