हाफ सेट चाय और कुछ यूँ ही / Half Set Chay Aur Kuchh Youn He
वाणी प्रकाशन एवं रजा फाउंडेशन, दिल्ली, 2018
about the book
एक रोजनामचा है. यहाँ कल्पना है, अनुभव है. दोस्तों के बीच खुद को बहलाने की कवायद है. गप्पबाजी है और अकेलेपन को बिसरा देने के लिए स्मृतियों कि गठरी है: मैली सी, जहां तहां से फटी हुई सी पर फिर भी ठहरी एक गठरी.
दूसरी तरह से कहें तो यात्रा का नाम दिया जा सकता है: भटकाव की डोर थामे चलते चले जाने जैसा कुछ. लेकिन भटकाव का वेग कुछ ऐसा कि एक पगडंडी कहाँ दूसरी में मिलकर पौने तीन कदम पर ही जाने किस तरफ मुड़ जाय. किसी तय राह पर कुछ दूर तक निभा जाने को जैसे असमर्थ हों ये शब्द. पौने तीन या कभी कभी तो ढाई या फिर सवा कदम पर ही राह बदलने को अभिशप्त भटकते शब्द.
" हिंदी में औपचारिकता का ऐसा वर्चस्व सा है कि अनौपचारिकता अक्सर जगह नहीं पाता। सदन झा का गद्द यहां से वहां सहज भाव से जाने की विधा है। "अशोक वाजपेयी
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Half Set Chay Aur Kuchh Youn He
Happy to share the news of my recent publication, this time in Hindi. This is a collection of short stories, ramblings and travel notes scribbled intermittently over the past few years.
It is titled as 'Half Set Chay aur Kuch Youn hi' and has been published by Vani Prakashan in collaboration with Raza Foundation, Delhi.