रेणु की दुनिया- जिसके बिना हम अधूरे हैं..
'' कई बार चाहा कि, त्रिलोचन से पूछूँ- आप कभी पूर्णिया जिला की ओर किसी भी हैसियत से, किसी कबिराहा-मठ पर गये हैं? किन्तु पूछकर इस भरम को दूर नहीं करना चाहता हूं। इसलिए, जब त्रिलोचन से मिलता हूं, हाथ जोड़कर, मन ही मन कहता हूं- "सा-हे-ब ! बं-द-गी !!"- फणीश्वर नाथ रेणु http://anubhaw.blogspot.com/2010/04/blog-post.html
अभी घर से भाग कर आफिस आया कि बैठकर एक लेख को पूरा कर लूँ. प्रकाशन में जाना जरुरी है और अभी भी महज मसला ही जुटा पाया. लेकिन यहाँ आते ही गिरीन्द्र का stetus बता रहा था कि रेणु पर कुछ लिख मारा है ब्लाग पर और फिर सब कुछ बिसरा कर अनुभव पढ़ने बैठ गया. रेणु और गुलजार दोनों ही प्रिय दोनों ही को पढ़कर मेरा मानस बना है. शायद मेरे जैसे बहुतेरे हैं. दोनों में एक अजीब किस्म की रहस्यात्मकता है. लेकिन गुलजार जहाँ इस दुनिया को सूफियों के समान देखते हैं और परोसते हैं, पिरोते हैं ऐसे जैसे की दुनिया घने कोहरे की चादरों में लिपटा हो वहीं रेणु में यह रहस्यवाद बहुत अलग तरह से आता है. उनके लिए दुनिया किसी चादर में लिपटा नहीं है. दुनिया कराकती धुप से परेसान है. रूमानियत हर तरफ बेचारगी में, भूख और गरीबी में कैद है. लेकिन रेणु भी रहस्यात्मक हैं. यह दुनिया को बयां करने के क्राफ्ट को लेकर. इनके यहाँ शव्दों की अर्थ-बहुलता से जीवन की आन्तरिकता का अहसास होता है. रेणु और गुलजार में यह फर्क इस कदर है की गुलजार पहले से गढ़े भाषाई थाती की गरिमा का मान रखते हैं, व्याकरण उनके लिये पूजनिय है। रेणू इस परंपरा, इस थाती को तोड़ते मरोड़ते हैं उनके लिये किरदारों का अनुभव, उनके कथानक का भाषाई परिवेश सबसे अहम है एक ही वाक्य में तदभव, तत्सम, देशज, विदेशज और शुद्ध संस्कत सभी कुछ।
गुलजार की भाषा जहां बहुत सहजता के साथ सीमा पार जाती है रेणू अपने पाठकों को अपने पात्रों के भौगोलिक, सामाजिक और अतित की ओर खींचते हैं। गुलजार के लिये भूगोल मायने नहीं रखता है वे अंतराष्ट्रीय है, यूनिवर्सल हैं जबकि रेणू भूगोल की मर्यादा को समझते हैं उनके यहां जगह, स्थानिकता स्पेस में विलीन नहीं होता। क्षेत्रियता महज उपस्थित मात्र नहीं है यह हमारे भाषाई संस्कारों को परिमार्जित करती चलती है हमे मजबूर करती है कि हम भाषा-भंजक बने, अनुभबों को बयाँ करने के रहस्य को उदगार देने हेतु। अनुभव जो अपने क्षेत्रियता में लिप्त है। अनुभव जो आपको ठोस जमीन पर ला खड़ा कर देता है अनुभव जो महज गुलपोश के महक की तरह हवा में नहीं तैरता है।Sadan Jha