khayalat (ख़यालात)
:ramblings, string of thoughts...to ponder and reflect.
Wednesday, June 01, 2011
जिल्दसाज
आजकल जिल्दसाज मेरे घर नहीं आता.
क्या तुमने देखा है उसे सड़क पर कहीं कभी?
कागज के ठोंगे की तरह, वह भी खो गया है.
या, कहीं मेरे घर का पता तो बदल नहीं गया?
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